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सिविल कानून
सिविल प्रक्रिया संहिता, 1908 का आदेश 18
«06-May-2025
परिचय
सिविल प्रक्रिया संहिता, 1908 (CPC) का आदेश 18 सिविल प्रक्रिया संहिता के अनुसार न्यायालय की कार्यवाही में साक्ष्य के अभिलेखन को नियंत्रित करने वाले विधिक उपबंधों रूपरेखा तैयार करता है। यह साक्ष्य दर्ज करने की प्रक्रिया, न्यायाधीशों के उत्तरदायित्त्वों तथा पक्षकारों को साक्ष्य प्रस्तुतीकरण के संबंध में प्राप्त अधिकारों को निर्धारित करता है।
नियम 1
- वादी को सामान्यतः न्यायालय की कार्यवाही में पहले अपना मामला प्रस्तुत करने का अधिकार होता है, जब तक कि प्रतिवादी वादी द्वारा अभिकथित सभी तथ्यों को स्वीकार न कर ले, और यह तर्क करता है कि वादी जिस अनुतोष को चाहता है, उसके किसी भाग को पाने का वह हकदार या तो विधि के प्रश्न के कारण या प्रतिवादी द्वारा अभिकथित कुछ अतिरिक्त तथ्यों के कारण नहीं है और उस दशा में आरंभ करने का अधिकार प्रतिवादी को होता।
नियम 2
- नियम 2(1) : उस दिन जो वाद की सुनवाई के लिये नियत किया गया हो, या किसी अन्य दिन जिस दिन के लिये सुनवाई स्थगित की गयी हो, वह पक्षकार जिसे आरंभ करने का अधिकार है, अपने मामले का कथन करेगा और उन विवाद्यकों के समर्थन में अपना साक्ष्य पेश करेगा जिन्हें साबित करने के लिये वह आबद्ध है।
- नियम 2(2) : तब दूसरा पक्षकार अपने मामले का कथन करेगा और अपना साक्ष्य (यदि कोई हो) पेश करेगा और पूरे मामले के बारे में साधारणतया न्यायालय को सम्बोधित कर सकेगा।
- नियम 2(3) : तब आरंभ करने वाला पक्षकार साधारणतया पूरे मामले के बारे में उत्तर दे सकेगा।
- नियम 2(3क) : कोई पक्षकार किसी वाद में मौखिक बहस कर सकेगा और यदि न्यायालय ऐसी अनुज्ञा प्रदान करे तो वह मौखिक बहस, यदि कोई हो, समाप्त करने के पहले न्यायालय को अपने मामले के समर्थन में संक्षिप्त रूप में और सुस्पष्ट शीर्षों के अधीन लिखित बहस प्रस्तुत कर सकेगा और ऐसी लिखित बहस अभिलेख का भाग होगी।
- नियम 2(3ख) : ऐसी लिखित बहस की एक प्रति विरोधी पक्षकार को भी साथ ही साथ दी जाएगी।
- नियम 2(3ग) : लिखित बहस दाखिल करने के प्रयोजन के लिये कोई स्थगन तब तक मंजूर नहीं किया जाएगा जब तक न्यायालय, ऐसे कारणों से, जो अभिलिखित किये जाएं, ऐसा स्थगन मंजूर करना आवश्यक न समझे।
- नियम 2(3घ) : न्यायालय, किसी मामले में दोनों पक्षकारों में से किसी पक्षकार द्वारा मौखिक बहस के लिये ऐसी समय सीमाएं नियत करेगा जैसी वह उचित समझे।
नियम 3
- जब एक वाद में कई विवाद्यक हों तथा जिनमें से कुछ को साबित करने का भार पृथक्-पृथक् पक्षकारों पर हो, तो आरंभ करने वाला पक्षकार यह विकल्प चुन सकता है कि वह समस्त साक्ष्य एक साथ प्रस्तुत करे अथवा कुछ साक्ष्य अन्य पक्ष के प्रत्युत्तरस्वरूप प्रस्तुत करने हेतु सुरक्षित रखे।
- नियम 3क
- यदि कोई पक्षकार अपने मामले में साक्षी के रूप में गवाही देना चाहता है, तो उसे अपनी ओर से किसी अन्य साक्षी के समक्ष उपसंजात होना होगा, जब तक कि न्यायालय अभिलिखित कारणों से अन्यथा अनुमति न दे।
नियम 4
- नियम 4(1) : प्रत्येक साक्षी की मुख्य परीक्षा शपथपत्र पर प्रस्तुत की जानी चाहिये, और साक्षी को बुलाने वाले पक्षकार द्वारा उसकी प्रतियाँ विरोधी पक्षकार को उपलब्ध कराई जानी चाहिये।
- नियम 4(1) का परंतुक : जहाँ दस्तावेज़ फाइल किये गए हों और पक्षकार उन दस्तावेज़ों पर निर्भर करते हों, वहाँ शपथपत्र के साथ फाइल किये गए ऐसे दस्तावेज़ों का सबूत और ग्राह्यता न्यायालयों के आदेश के अधीन रहते हुए होगी।
- नियम 4(1क): सभी साक्षियों के साक्ष्य शपथपत्र, जिनका किसी पक्षकार द्वारा साक्ष्य दिया जाना प्रस्तावित है प्रथम मामला प्रबंधन सुनवाई में निर्दिष्ट समय पर उस पक्षकार द्वारा समसामयिक रूप से फाइल किये जाएंगे।
- नियम 4(1ख) : कोई पक्षकार किसी साक्षी का (जिसके अंतर्गत ऐसा साक्षी भी है, जो पहले ही शपथपत्र दाखिल कर चुका है) शपथपत्र द्वारा अतिरिक्त साक्ष्य तब तक पेश नहीं करेगा, जब तक उस प्रयोजन के लिये आवेदन में पर्याप्त कारण नहीं दिया जाता है और न्यायालय द्वारा ऐसे अतिरिक्त शपथपत्र को अनुज्ञात करने का कारण देते हुए आदेश पारित नहीं किया जाए।
- नियम 4(1ग) : तथापि किसी पक्षकार को उस साक्षी की प्रति-परीक्षा प्रारंभ होने से पहले किसी समय पर इस प्रकार फाइल किये गये किन्हीं शपथपत्रों के ऐसे प्रत्याहरण के आधार पर कोई प्रतिकूल निष्कर्ष निकाले बिना प्रत्याहरण का अधिकार होगा।
- नियम 4(1ग) का परंतुक : कोई अन्य पक्षकार साक्ष्य देने का हकदार होगा और ऐसे प्रत्याहरित शपथपत्र में की गयी किसी स्वीकृति पर निर्भर करने का हकदार होगा।
- नियम 4(2) : साक्षियों की प्रतिपरीक्षा और पुनः परीक्षा या तो न्यायालय द्वारा या न्यायालय द्वारा नियुक्त कमिश्नर द्वारा की जाएगी।
- नियम 4(3) : यथास्थिति. न्यायालय या कमिश्नर साक्ष्य को यथास्थिति न्यायाधीश या कमिश्नर की उपस्थिति में या तो लिखित रूप से या यांत्रिक रूप से अभिलिखित करेगा और जहाँ ऐसा साक्ष्य कमिश्नर द्वारा अभिलिखित किया जाता है, तो वह ऐसे साक्ष्य को अपनी लिखित और हस्ताक्षरित रिपोर्ट सहित उसे नियुक्त करने वाले न्यायालय को वापस करेगा।
- नियम 4(4) : कमिश्नर परीक्षा के समय किसी साक्षी की भावभंगी की बाबत ऐसे टिप्पण अभिलिखित करेगा जो वह तात्त्विक समझे।
- नियम 4(5) : कमिश्नर की रिपोर्ट, कमीशन निकाले जाने की तारीख से साठ दिन के भीतर कमीशन नियुक्त करने वाले न्यायालय को प्रस्तुत की जाएगी सिवाय तब के जब न्यायालय लेखबद्ध किये जाने वाले कारणों से समय का विस्तार कर दे।
नियम 5
- अपील योग्य मामलों में, साक्षी के साक्ष्य को न्यायालय की भाषा में या तो न्यायाधीश की अधीक्षण में लिखित रूप में, न्यायाधीश के निदेशन में टाइपराइटर पर लिखा जाना चाहिये, या यदि न्यायाधीश ऐसा निदेश दे तो कारणों सहित यांत्रिक रूप से अभिलिखित किया जाना चाहिये।
नियम 6
- जब साक्ष्य को उस भाषा से भिन्न भाषा में अभिलिखित किया जाता है, जो उसे दी गई थी, और साक्षी अभिलिखित की गई भाषा को नहीं समझता है, तो लिखित साक्ष्य को साक्षी को उसकी मूल भाषा में समझाना आवश्यक है।
नियम 7
- धारा 138 के अधीन लिखा गया साक्ष्य नियम 5 द्वारा विहित प्ररूप में होगा और वह पढ़कर सुनाया जाएगा और हस्ताक्षरित किया जाएगा और यदि अवसर से ऐसा अपेक्षित हो तो उसका भाषांतर और शोधन उसी प्रकार किया जाएगा मानो वह उस नियम के अधीन लिखा गया होना हो।
नियम 8
- जब साक्ष्य को न्यायाधीश द्वारा व्यक्तिगत रूप से नहीं लिखा जाता है या उनकी उपस्थिति में यंत्रवत् रूप से अभिलिखित नहीं किया जाता है, तो न्यायाधीश को प्रत्येक साक्षी के साक्ष्य का एक ज्ञापन बनाना चाहिये, जिस पर न्यायाधीश द्वारा हस्ताक्षर किया जाना चाहिये और उसे अभिलेख का भाग बनना चाहिये।
नियम 9
- नियम 9(1) : जहाँ न्यायालय की भाषा अंग्रेजी नहीं है किंतु वाद के वे सभी पक्षकार जो स्वयं उपसंजात हैं और उन पक्षकारों के जो प्लीडरों के द्वारा उपसंजात हैं, प्लीडर ऐसे साक्ष्य के जो अंग्रेजी में दिया जाता है, अंग्रेजी में लिखे जाने पर आक्षेप नहीं करते है वहाँ न्यायाधीश उसे उसी रूप में लिख सकेगा या लिखवा सकेगा।
- नियम 9(2) : जहाँ साक्ष्य अंग्रेजी में नहीं दिया जाता है किंतु वे सभी पक्षकार जो स्वयं उपसंजात हैं और उन पक्षकारों के जो प्लीडरों के द्वारा उपसंजात हैं, प्लीडर ऐसे साक्ष्य के अंग्रेजी में लिखे जाने पर आक्षेप नहीं करते न्यायाधीश ऐसा साक्ष्य अंग्रेजी में लिख सकेगा या लिखवा सकेगा।
नियम 10
- यदि ऐसा करने के लिये कोई विशेष कारण प्रतीत होता है तो न्यायालय किसी विशिष्ट प्रश्न और उत्तर को या किसी प्रश्न के संबंध में किसी आक्षेप की प्रेरणा से या किसी पक्षकार या उसके प्लीडर के आवेदन पर लिख सकेगा।
नियम 11
- जहाँ किसी साक्षी से किये गये किसी प्रश्न पर किसी पक्षकार या उसके प्लीडर द्वारा आक्षेप किया गया है और न्यायालय उसका पूछा जाना अनुज्ञात करता है वहाँ न्यायाधीश उस प्रश्न, उत्तर, आक्षेप और उसे करने वाले व्यक्ति के नाम को उस पर न्यायालय के विनिश्चय के सहित लिखेगा।
नियम 12
- न्यायालय साक्षी की परीक्षा किये जाते समय उसकी भावभंगी के बारे में टिप्पणियाँ, जिन्हें वह तात्त्विक समझता हो, अभिलिखित कर सकेगा।
नियम 13
- ऐसे से मामले में, जिनमें अपील अनुज्ञात नहीं है, यह आवश्यक नहीं होगा कि साक्षियों का साक्ष्य विस्तार सहित लिखा जाएगा या बोलकर लिखवाया जाए या अभिलिखित किया जाए किंतु न्यायाधीश, जैसे-जैसे हर एक साक्षी की परीक्षा होती है वैसे-वैसे, उसके अभिसाक्ष्य के सार का ज्ञापन लिखेगा या बोलने के साथ ही टाइपराइटर पर टाइप करायेगा या यंत्र द्वारा अभिलिखित करायेगा और ऐसा ज्ञापन न्यायाधीश द्वारा हस्ताक्षरित किया जाएगा या अन्यथा अधिप्रमाणित किया जाएगा और अभिलेखक का भाग होगा।
नियम 15
- नियम 15(1): जहाँ मृत्यु, स्थानान्तरण या अन्य कारण से न्यायाधीश वाद के विचारण की समाप्ति करने से निवारित हो जाता है वहाँ उसका उत्तरवर्ती, पूर्वगामी नियमों के अधीन लिये गये किसी भी साक्ष्य या बनाये गये किसी भी ज्ञापन का उसी प्रकार उपयोग कर सकेगा मानो ऐसा साक्ष्य या ज्ञापन उक्त नियमों के अधीन उसी के द्वारा या उसके निदेश के अधीन लिया गया था या बनाया गया था, और वह वाद में उस प्रक्रम से अग्रसर हो सकेगा जिसमें उसे उसके पूर्ववर्ती ने छोड़ा था।
- नियम 15(2) : उपनियम (1) के उपबंध धारा 24 के अधीन अंतरित वाद में लिये गये साक्ष्य की वहाँ तक लागू समझे जाएंगे जहाँ तक वे लागू किये जा सकते हैं।
नियम 16
- नियम 16(1) : जब कोई साक्षी न्यायालय की अधिकारिता से बाहर जाने वाला हो, या अन्य पर्याप्त कारण हो, तो न्यायालय किसी भी पक्षकार या साक्षी के आवेदन पर तत्काल साक्षी का साक्ष्य ले सकता है।
- नियम 16(2) : यदि ऐसा अत्यावश्यक साक्ष्य पक्षकारों की उपस्थिति में तत्क्षण नहीं लिया जाता है, तो न्यायालय को सभी पक्षकारों को परीक्षा के लिये नियत दिन की तिथि की पर्याप्त सूचना देनी चाहिये।
- नियम 16(3) : तत्काल लिये गए साक्ष्य को साक्षी को पढ़कर सुनाया जाना चाहिये और यदि उसे सही माना जाता है तो उस पर साक्षी और न्यायाधीश द्वारा हस्ताक्षर किये जाने चाहिये, जो यदि आवश्यक हो तो उसमें सुधार कर सकते हैं, जिसके पश्चात् उसे वाद की किसी भी सुनवाई में पढ़ा जा सकता है।
नियम 17
- न्यायालय वाद के किसी भी प्रक्रम में ऐसे किसी भी साक्षी को पुनः बुला सकेगा जिसकी परीक्षा की जा चुकी है और (तत्समय प्रवृत्त साक्ष्य की विधि के अधीन रहते हए) उससे ऐसे प्रश्न पूछ सकेगा जो न्यायालय ठीक समझे।
नियम 18
- न्यायालय को कार्यवाही के किसी भी प्रक्रम में किसी वाद में उठने वाले प्रश्नों से संबंधित किसी भी संपत्ति या वस्तु का निरीक्षण करने का अधिकार है।
- जब न्यायालय ऐसा निरीक्षण करता है, तो उसे यथाशीघ्र निरीक्षण के दौरान देखे गए सभी सुसंगत तथ्यों का एक ज्ञापन तैयार करना चाहिये, और यह ज्ञापन वाद के आधिकारिक अभिलेख का भाग बन जाता है।
नियम 19
- इन नियमों में किसी बात के होते हुए भी, न्यायालय, खुले न्यायालय में साक्षियों की परीक्षा करने के बजाय आदेश 26 के नियम 4-क के अधीन उनके कथन को कमीशन द्वारा अभिलिखित किये जाने के लिये निदेश दे सकेगा।
निष्कर्ष
ये उपबंध न्यायालय कार्यवाही में साक्ष्यों का उचित दस्तावेजीकरण सुनिश्चित करते हैं, जिससे न्यायिक प्रक्रिया में पारदर्शिता और एकरूपता बनी रहती है। नियम साक्ष्यों की अखंडता को बनाए रखते हुए साक्ष्य अभिलिखित करने के विभिन्न तरीकों को समायोजित करते हैं। विधिक कार्यवाही में सम्मिलित सभी पक्षकारों को साक्ष्यों की उचित प्रस्तुति और संरक्षण सुनिश्चित करने के लिये इन दिशानिर्देशों का पालन करना चाहिये।